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Ajmer 1992 Black Mail Case: जब 100 से ज्यादा लड़कियों के साथ हुआ रेप, अश्लील तस्वीरों के जरिए किया ब्लैकमेल

Ajmer 1992 Black Mail Case: जब 100 से ज्यादा लड़कियों के साथ हुआ रेप, अश्लील तस्वीरों के जरिए किया ब्लैकमेल

Ajmer Black Mail Rape Case:

मामले में अजमेरके एक मशहूर प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को फार्म हाउस में बुलाया जाता था, जहां उनके साथ दुष्कर्म किया जाता। पीड़ित लड़कियों की उम्र 11 से 20 साल के बीच थी। आज जानते हैं कि आखिर कैसे इस पूरे ब्लैकमेल कांड को अंजाम दिया गया और किस तरह से इसका खुलासा हुआ

AJMER 1992 BLACK MAIL CASE:

नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद जमीर हुसैन को आजीवन कारावास की सजासूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह वाला अजमेर, आज भी 1992 के उस खौफनाक मामले को याद कर सिहर उठता है, जब शहर की 100 से ज्यादा लड़कियों को ब्लैकमल कर, उनके साथ रेप किया गया। आज इस मामले में POCSO कोर्ट ने बाकी छह आरोपियों को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। अदालत ने नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद जमीर हुसैन सहित हर एक आरोपी पर पांच-पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। एक आरोपी इकबाल भाटी को अदालत में पेश होने के लिए एंबुलेंस में दिल्ली से अजमेर लाया गया था।इस मामले में कुछ पावरफुल लोग, जिनके राजनीतिक संबंध भी थे, उन्होंने लड़कियों को ब्लैकमेल किया और उनका यौन शोषण किया। लड़कियों की अश्लील तस्वीरें खींचकर उन्हें ब्लैकमेल किया गया था। इनमें से कुछ लोगों का सूफी दरगाह से भी कनेक्शन था। पुलिस के अनुसार इन तस्वीरों को लीक करने की धमकी देकर 100 से ज्यादा लड़कियों का यौन शोषण किया गया।

मामले में अजमेर के एक मशहूर प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को फार्म हाउस में बुलाया जाता था, जहां उनके साथ दुष्कर्म किया जाता। पीड़ित लड़कियों की उम्र 11 से 20 साल के बीच थी। आज जानते हैं कि आखिर कैसे इस पूरे ब्लैकमेल कांड को अंजाम दिया गया और किस तरह से इसका खुलासा हुआ।

यह मामला तब सुर्खियों में आया, जब अप्रैल 1992 में एक लोकल पत्रकार संतोष गुप्ता ने इस पर रिपोर्ट की। इस घटना से जुड़े कुछ मामले अदालत में अभी भी चल रहे हैं।

यौन शोषण का ये घिनौना काम कई सालों से चल रहा था, जो 1992 में खत्म हुआ। स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियों को बहला-फुसलाकर दूरदराज वाली जगह पर ले जाया गया था, जहां एक या उससे ज्यादा लोगों ने उनका बार-बार यौन उत्पीड़न किया।लड़कियों को ऐसे फंसाया जाता था

पुलिस के अनुसार, एक लड़की का इस्तेमाल उसकी दोस्तों को इस जाल में फंसाना के लिए किया जाता था और फिर करते- करते ये दुष्कर्म का एक जाल बन गया। फिर सभी लड़कियों को उनकी आपत्तिजनक तस्वीरें दिखा कर चुप रहने के लिए ब्लैकमेल किया गया, जो बलात्कारियों ने अपराध करते समय खींची थीं।इसका खुलासा तब हुआ, जब एक फोटो लैब ने कुछ तस्वीरें लीक कर दीं। इसी लैब में लड़िकियों के आपत्तिजनक तस्वीरें डेवलप की जा रही थीं।संतोष गुप्ता ने स्थानीय अखबार के लिए इन लीक तस्वीरों के साथ खबर को ब्रेक किया। वह किसी तरह इन तस्वीरों के हासिल करने में कामयाब रहे।

रसूखदार आरोपी

Indian Express के मुताबिक, राजस्थान के रिटायर DGP ओमेंद्र भारद्वाज ने 2018 में बताया, “आरोपी सामाजिक और आर्थिक रूप से बहुत पावरफुल थे। इसी के चलते पीड़ित लड़कियों को आगे आने और गवाही देने के लिए राजी करना और भी मुश्किल हो गया था।”

लंबी जांच के बाद, कुल 18 लोगों पर आरोप लगाए गए, उनमें से कुछ प्रभावशाली खादिमों के परिवारों से थे, जो दरगाह में सेवा करते हैं और खुद को सूफी संत के असली सेवादारों के वंशज बताते हैं।

इन 18 लोगों में सबसा बड़ा नाम फारूक और नफीस चिश्ती का था। ये दोनों युवा कांग्रेस के नेता और लोकल “सेलिब्रिटी जैसे थे, जो इस छोटे से शहर में अपनी पावर और पैसा की हनक में रहते थे।

रसूख के जरिए लड़कियों को फंसाया

गुप्ता का कहना है कि इसी रसूख का इन लोगों ने फायदा उठाया और खुलेआम दिखावा किया, जिससे उन्हें लड़कियों को फंसाने में मदद मिली। ये लोग पहले जवान लड़कियों को तैयार करते थे और फिर उन्हें शिकार बनाते थे।

बताया जाता है कि फारूक ने ही सबसे पहले अजमेर के सोफिया सीनियर सेकेंडरी स्कूल की एक लड़की को अपने जाल में फंसाया और उसकी अश्लील तस्वीरें खींच लीं। बाद में अदालतों में उसे मानसिक रूप से अस्थिर घोषित कर दिया गया।

सबसे पहले आठ लोगों को आजीवन कारावास

1998 में, अजमेर की एक सत्र अदालत ने आठ लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन 2001 में  राजस्थान हाई कोर्ट ने उनमें से चार को बरी कर दिया। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चार दोषियों मोइजुल्लाह उर्फ पुत्तन, इशरत अली, अनवर चिश्ती और शमशुद्दीन उर्फ मेराडोना की सजा घटाकर 10 साल कर दी।

छह लोग अभी भी मुकदमे का सामना कर रहे हैं और केवल एक आरोपी, अल्मास महाराज, फरार है और माना जाता है कि वो अमेरिका में है। उसके खिलाफ CBI ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया है।

पीड़ितों की एक अग्निपरीक्षा

एक बार जब इस पूरे मामले का खुलासा हो गया, तो अजमेर में हिंसा और अराजकता फैल गई। विरोध प्रदर्शनों के चलते शहर को दो दिनों के लिए बंद करना पड़ा। ये खतरा पैदा हो गया कि कहीं ये मामला सांप्रदायिक रंग न ले ले, क्योंकि आरोपी ज्यादातर मुस्लिम थे और कई पीड़िता हिंदू थीं

हालांकि, जैसे ही मुकदमा शुरू हुआ, ज्यादातर लड़िकयां अपने बयान से मुकर गईं। जबकि पुलिस को शक था कि 50 से 100 पीड़ित लड़कियां थीं, केवल कुछ ही गवाही देने के लिए आगे आईं। उनमें से भी बहुत कम लोग ही अभी भी अपने बयानों पर कायम हैं।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

इस मामले में 2003 के सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के अनुसार, “दुर्भाग्य से गवाही के लिए पेश हुए कई पीड़ित मुकर गए। कोई भी उनकी इस मजबूरी को समझ सकता है कि वो गवाही क्यों नहीं देना चाहते, क्योंकि उससे उनकी पहचान भी उजागर हो जाएगी, जिसका असर उनका आने वाले जीवन पर पड़ता।”

राइटर अनुराधा मारवाह ने इस मामले पर एक किताब भी लिखी है, उन्होंने 2018 में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “पीड़ितों के इर्द-गिर्द इस तरह का सामाजिक कलंक फैल गया कि जिन संस्थानों में लड़कियां पढ़ती थीं, उन्हें भी खराब नजरों से देखा जाने लगा।”

अधिकारियों ने नहीं दिलाया न्याय

मारवाह पहले अजमेर में ही रहती थीं, वे याद करती हैं, “मेरी मां ऐसे ही एक कॉलेज की वाइस प्रिंसिपल थीं। मुझे याद है कि एक दिन वह रोते हुए घर आईं और बताया कि एक पीड़ित लड़की ने आत्महत्या कर ली थी। यह मामला एक घाव की तरह था, जिसे कभी भरने ही नहीं दिया गया।”

संतोष गुप्ता इस मामले में पीड़ितों के साथ हुई परेशानी का दोषी अधिकारियों के नजरिए को भी मानते हैं। उन्होंने कहा, शुरुआत से ही, पुलिस ने लड़िकयों न्याय दिलाने के बजाय, उन्हें रोकने पर ज्यादा ध्यान दिया, क्योंकि उनका मानना था कि इस घटना के कारण “कानून और व्यवस्था की स्थिति” बिगड़ सकती है।

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